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Thursday, April 15, 2021

डेब्यू फिल्म पर बोले ए.आर रहमान- पहली ही फिल्म में पाकिस्तानी ऐक्टर लेने का रिस्क नहीं उठाना चाहता था

संगीत की दुनिया में जादू चलाने वाले ऑस्कर अवॉर्ड विजेता संगीतकार एआर रहमान अपनी फिल्म 99 सॉन्ग्स में पहली बार बतौर लेखक और निर्माता दर्शकों का दिल जीतने आ रहे हैं। अपनी इस नई पारी और फिल्म के सिलसिले में एआर रहमान ने हमसे की ये खास बातचीत:गाने कंपोज करते-करते आपको अचानक फिल्म लिखने का खयाल कैसे आया? जब 2001 में मैं बॉम्बे ड्रीम्स (हॉलिवुड म्यूजिकल प्ले) करने लंदन गया था, तो एंड्रयू लॉयड बेवर, जो थिएटर के बादशाह हैं, उन्होंने मुझसे पूछा कि एआर, तुम्हारे पास कोई कहानी है? तब मैंने सोचा कि उन्होंने मुझसे ये सवाल क्यों पूछा? मैं तो एक कंपोजर हूं। फिर मुझे लगा कि शायद मैं खुद को सिर्फ एक कंपोजर के रूप में सीमित कर रहा हूं। तब मैं शेखर कपूर के साथ मिक्स कर रहा था, तो जब आप बेहतरीन लोगों के साथ काम करते हैं, तो आप पर भी उनका असर पड़ता है, जिस तरह से वे कहानी को क्रिएट कर रहे थे, आइडिया पर काम कर रहे थे, तो मेरे मन में भी लिखने का खयाल आया। फिर, मैंने वर्कशॉप्स कीं और 2010 में इस स्टोरी का आइडिया आया कि क्या हो, अगर एक लड़का किसी लड़की के लिए सौ गाने लिखे। फिर कई कहानियां जेहन में आई, तो मैं लिखता गया, लेकिन मैंने तय किया कि पहली फिल्म यही होनी चाहिए, तो बाकी काम रोककर मैंने इस पर काम किया और अब ये रिलीज हो रही है। ये फिल्म बनाना, गाने बनाने से कितना मुश्किल या अलग अनुभव रहा? ये फिर से एलकेजी, यूकेजी, क्लास वन में पढ़ने जैसा था, क्योंकि प्रड्यूसर के तौर पर आपको सोचना पड़ता है कि फिल्म को देखने लायक बनाने के लिए क्या-क्या करना होगा? इसमें भारी भरकम पैसे लगे होते हैं। हमारे पैसे, किसी और के पैसे, हमारा वक्त, दूसरे लोगों का वक्त। बहुत से लोगों के सपने जुड़े होते हैं और आप पूरे जहाज के कैप्टन होते हैं, तो आपकी ये जिम्मेदारी होती है कि जहाज किनारे तक सही तरीके से पहुंच जाए। इसलिए, मेरी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ गई थी। नींदें भी ज्यादा उड़ी हुई थीं। मैंने अपनी क्षमता के अनुसार इसे बेस्ट बनाने की कोशिश की है। सुना है कि फिल्म के डायरेक्टर इसमें पाकिस्तानी ऐक्टर्स को लेना चाहते थे, पर आप उससे खुश नहीं थे। हां, हम ऐसे आर्टिस्ट को ढूंढ़ रहे थे, जो गा भी सके और ऐक्टिंग भी कर सके। हम जब कास्टिंग कर रहे थे, तब भारत-पाक के कलाकार एक-दूसरे के साथ काम कर रहे थे। तब पाकिस्तान के कई आर्टिस्ट यहां काम कर रहे थे, तो मेरे डायरेक्टर ने कहा कि उन्हें कास्ट करते हैं, लेकिन मुझे लगा कि चीजें शायद बदल सकती हैं, तो मैंने कहा कि भाई, इंडिया से ही किसी को ढूंढों, वरना शायद हम मुसीबत में पड़ जाएं और छह महीने बाद ही ये मुश्किलें शुरू हो गई, तो हम बच गए। हालांकि, दोनों देशों के बीच बहुत सारा सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता है, लेकिन ये मेरी पहली फिल्म थी और मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। आपको नहीं लगता कि कला और कलाकारों को ऐसी सीमा मे नहीं बांधा जाना चाहिए? हां, लेकिन अभी इन सबके बारे मे बात नहीं करते हैं। (हंसते हैं) आपने स्थापित ऐक्टर्स के बजाय फिल्म के लिए न्यूकमर्स को क्यों चुना? ये बहुत ही महत्वकांक्षी फिल्म है, तो हमें ऐसा कलाकार चाहिए था, जो इसे वक्त दे। एक साल पियानो सीखने में लगाए। आप बताओ, किस फेमस ऐक्टर के पास इतना टाइम है? आजकल तो ऐक्टर्स एक दिन या एक अपीयरेंस के लिए भी बहुत सारा पैसा लेते हैं। हालांकि, हमारे यहां कमाल के डेडिकेटेड ऐक्टर्स भी हैं, लेकिन इस रोल के लिए कोई ऐसा चाहिए था, जो यंग हो, नया हो, जिसे हम सिखाकर इंडस्ट्री को कुछ दे सकें, तो इस फिल्म से हम इंडस्ट्री को एक डायरेक्टर और हीरो भी दे रहे हैं, जो इंडस्ट्री को और समृद्ध बनाएंगे। क्या आपको लगता है कि फिल्म को इस कोरोना महामारी के बीच रिलीज करना सही है? जबकि, कई जगहों पर थिएटर्स बंद है, इसे उतने दर्शक मिल पाएंगे? मेरी फिल्म के लिए ये एक वरदान है कि यह बहुत सारी फिल्मों की भीड़ में नहीं आ रही है। ये फिल्म बहुत प्यार से बनाई गई है, इसमें बहुत सारे लेयर हैं, तो लोग अगर सिर्फ इस फिल्म को देखने थिएटर में आएंगे, तो इसे ज्यादा बेहतर समझ पाएंगे। बजाय इसके कि ये बहुत सारी बड़ी फिल्मों के बीच में आती, क्लैश होती, मुझे लगता है कि ये समय अच्छा है। मैं उम्मीद करता हूं कि लोग इस फिल्म को सपोर्ट करें, ताकि इंडस्ट्री सर्वाइव करे। इंडस्ट्री में उम्मीद जगे। बहुत से लोगों को लग रहा है कि जैसे मूवी इंडस्ट्री खत्म ही हो गई है। लाइटमैन, मेकअप मैन, ऐक्शन डायरेक्टर, फाइटर्स, डांस डायरेक्टर, ये इंडस्ट्री बहुत सारे लोगों का घर चला रही है, तो एक सफलता इन सभी लोगों को बहुत उम्मीद देगी। आपकी बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म ले मस्क का क्या स्टेटस है? ले मस्क को चार साल पोस्ट प्रोडक्शन में लगे, क्योंकि वो वर्चुअल रिएलिटी तकनीक पर आधारित फिल्म है। उसे मैंने इंग्लिश में डायरेक्ट किया है। वह एक इंस्टालेशन प्रॉजेक्ट है। इंग्लैंड में उसे इंस्टाॅल किया गया। एक बार ये फिल्म पूरी कर लूं, फिर उस पर ध्यान दूंगा। पिछले दिनों आपने मां तुझे सलाम... गाने के रीमेक पर ऐतराज जताया था। आप मौजूदा हिंदी फिल्म म्यूजिक को लेकर क्या सोचते हैं? ये सही दिशा में है या सुधार की जरूरत है? मैं इस पर पूरी तरह कॉमेंट नहीं कर सकता, क्योंकि मुझे पता नहीं है कि क्या हो रहा है, लेकिन मैं इस शॉर्टकर्ट का समर्थन नहीं करता, जो लोग रीमिक्स के रूप में कर रहे हैं, क्योंकि कुछ गाने आपके जेहन में ताजा होते हैं। आप उस खूबसूरत याद को तोड़-मरोड़ रहे हैं, जो उस फिल्म के साथ जुड़ी हुई है और उसे दूसरी फिल्म में डाल रहे हैं। यही नहीं, इससे ये भी दिखता है कि आपको उस म्यूजिक कंपोजर, गीतकार और जो कमाल का टैलंट हमारे देश में है, उस पर भरोसा नहीं है। हमें अपने टैलंट पर भरोसा करना और नए गीतकारों, संगीतकारों से नया काम करवाना जरूरी है, ताकि लोगों को रीमिक्स या जो गाने, उन्होंने पहले सुने हुए हैं, वही नहीं सुनना पड़ेगा।


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