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में पैदल अपने गांव की तरफ जाते प्रवासी मजदूरों की तमाम कहानियों ने दिल को छलनी किया है। कंधे पर सामान का बोझ, गोद में बच्चे और तपती धरती पर मासूम नन्हें पैर। ये वीडियो देखने के बाद दिल रोता है। अब इन प्रवासी मजदूरों के दर्द को भोजपुरी ऐक्ट्रेस ने अपनी आवाज दी है। और ऐसी आवाज दी है कि आप चीख पड़ेंगे। यह दर्द इस कविता में जिस तरह से उतरा है, आपको झकझोर देने के लिए काफी है। मजदूरों से यह अपील करते हुए कि वापस मत लौटना इन महानगरों में। एक महानगर बनकर माफी मांगते हुए इन मजदूरों से यामिनी ने जिन अहसासों को शब्दों में बोया है, उसे सिर्फ महसूस कर सकते हैं। हर शब्द के साथ हम ऐसे जुड़ते जाते हैं जैसे हम सभी दोषी हों इसके लिए और कब आंखें नम हो जाती हैं पता नहीं चलता। कई शब्द दिल को चीर देते हैं कई शब्द तो इतने तीखे हैं कि दिल को चीर देते हैं। कई बार बोलते हुए खुद यामिनी का गला रुंध जाता है। जब इंसान के भीतर खूबसूरत दिल हो तो फिर उसके लिए इस संघर्ष को बयां करने में जरूर मुश्किल होगी। यामिनी भी शब्दों के साथ जब भावनाओं में उतरती हैं तो यही होता है। वह रोना नहीं चाहतीं पर ये दुख इतना बड़ा है कि आवाज कब भारी हो जाए पता नहीं चलता है। यह शब्द नहीं, अहसास हैं भोजपुरी की टॉप ऐक्ट्रेस यामिनी सिंह के लिए ये शब्द लिखने आसान नहीं रहे होंगे। जब ये मजदूर सड़कों पर तपे होंगे...जब इनके बच्चे रोए होंगे...जब माताएं अपने बच्चों को पल्लू में लेकर कहीं सड़क किनारे सोई होंगी...तब कहीं यह दर्द पन्ने पर यामिनी ने उकेरा होगा। शब्द भी क्या इसे तो अहसास ही कहेंगे जो सीधे दिल में उतरता और आंखें बरस पड़ती हैं। फिर कहती हैं...अब मत लौटना सच तो यही है कि अगर ये भावनाएं, ये आत्मीयता ये मानवता हम सबमें हो जाए तो फिर जो सवाल कविता के जरिए यामिनी उठा रही हैं उसकी जरूरत नहीं दिखाई देती। पर, कड़वी सच्चाई यह भी है कि जब कंक्रीट का शहर कंक्रीट के इंसान भी बनाने लगें तो समय-समय पर ऐसी कविताएं जरूरी भी हैं। क्या पता हम फिर इंसान हो जाएं। यह उम्मीद करती हैं यामिनी। पर, फिर कहती हैं, अब मत लौटना।
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