के केस में ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान की रिपोर्ट्स पर तीखे सवाल पूछे हैं। हाई कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी से पूछा है कि जब जांच चल रही है तो वे कौन होते हैं दर्शकों से पूछने वाले कि किसकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा है कि रिपब्लिक टीवी ने 'खोजी पत्रकारिता' के नाम पर व्यक्ति के निजी अधिकारों का हनन किया है। कोर्ट ने न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (एनबीएफ) पर भी सवाल उठाते हुए कहा है कि ऐसी 'गैर जिम्मेदाराना' रिपोर्टिंग पर स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लिया गया जिसमें सुशांत सिंह राजपूत के केस का मीडिया ट्रायल किया जा रहा है। याचिका पर चीफ जस्टिस ने खुद की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस गिरीश एस कुलकर्णी की बेंच महाराष्ट्र के 8 सीनियर पुलिस अधिकारियों सहित कई ऐक्टिविस्ट्स, वकीलों और एनजीओ की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें सुशांत सिंह राजपूत के मामले में हो रहे मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने की मांग की गई थी। दूसरी तरफ रिपब्लिक टीवी की वकील मालविका त्रिवेदी ने याचिका में किए गए उन दावों को खारिज किया जिनमें कहा गया है कि चैनल ने मुंबई पुलिस का यह कहकर नाम खराब करने की कोशिश की है कि वह ठीक तरह से मामले की जांच नहीं कर रही है। वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी यह पाया था कि जांच में कुछ खामियां थीं और इसीलिए सुशांत सिंह राजपूत के केस को सीबीआई के हवाले किया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि चैनल की कथित 'खोजी पत्रकारिता' के कारण सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में बहुत से फैक्ट्स सामने आए हैं। कोर्ट ने कथित 'खोजी पत्रकारिता' पर लगाई लताड़ कोर्ट ने चैनल के द्वारा सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद सोशल मीडिया पर की गिरफ्तारी के लिए चलाए गए हैशटैग्स पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि चैनल को क्या अधिकार है कि वह जनता से पूछे कि किसको गिरफ्तार किया जाए या नहीं। कोर्ट ने पूछा कि क्या यही रिपब्लिक टीवी की 'खोजी पत्रकारिता' है। इसके जवाब में वकील मालविका त्रिवेदी ने कहा कि यह केवल जनता की ओपिनियन थी। हालांकि कोर्ट ने उनके दावों को खारिज करते हुए कहा है कि जब जांच एजेंसी इस बात की जांच कर रही है कि यह हत्या थी या सूइसाइड तो रिपब्लिक टीवी ने यह स्टैंड क्यों लिया कि यह एक हत्या थी और क्या यही उनकी कथित 'खोजी पत्रकारिता' का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा- 'लक्ष्मण रेखा' पार न करेंकोर्ट ने सुशांत सिंह राजपूत के मामले में चैनल की रिपोर्टिंग को लताड़ लगाते हुए कहा कि सूइसाइड के मामलों में रिपोर्टिंग की कुछ खास गाइडलाइंस होती हैं और लगता है कि चैनल को मृतक के प्रति कोई सम्मान नहीं है जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। चीफ जस्टिस दत्ता ने आगे नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि कोर्ट बिल्कुल नहीं कह रहा है कि चैनल को सरकार की आलोचना नहीं करनी चाहिए लेकिन रिपोर्टिंग के कुछ नियम हैं जिनका पालन करना चाहिए। चीफ जस्टिस ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि चैनल को अपनी 'लक्ष्मण रेखा' पार नहीं करनी चाहिए। बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच मामले पर अगली सुनवाई शुक्रवार को करेगी।
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