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Monday, October 11, 2021

अटेंशन हासिल करने के लिए बॉलिवुड को निशाना बनाया जाता है: तापसी पन्नू

बॉलिवुड में ब्यूटी और ब्रेन का संगम कहलाने वाली लगातार मुद्दों वाली फिल्में करके महिला सशक्तिकरण की झंडाबरदार साबित हुई हैं। तापसी इन दिनों चर्चा में हैं अपनी ताजा-तरीन फिल्म 'रश्मि रॉकेट' से। यह फिल्म ज़ी फाइव पर 15 अक्टूबर को स्ट्रीम होगी। अपनी फिल्म के जरिए वे आइएएएफ के विवादित जेंडर टेस्ट के खिलाफ महिला खिलाड़ियों की आवाज बुलंद करती नजर आ रही हैं। इस खास बातचीत में वे जेंडर टेस्ट, जेंडर इनक्वैलिटी, पे पैरिटी, मां दुर्गा की शक्ति और आर्यन खान ड्रग जैसे मुद्दों पर बात करती हैं। क्या 'रश्मि रॉकेट' में आपका किरदार एशियन गोल्ड मेडलिस्ट खिलाड़ी पिंकी प्रामाणिक से प्रेरित है? -मेरे हर इंटरव्यू में मुझसे यह सवाल पूछा जा रहा है। कोई कह रहा है यह फिल्म पिंकी से प्रेरित है? तो कोई पूछ रहा है कि क्या यह दुति से इंस्पायर है? कोई शांति सौंदर्यराजन का नाम लेकर आया, जिनके साथ यह जेंडर टेस्ट हुआ था। मगर मैं आपको कहना चाहूंगी कि ये किसी एक खिलाड़ी की बायॉपिक नहीं है। ये फिल्म उन सारी फीमेल एथलीट को मिला-जुला कर बनाई गई है, जिनके साथ जेंडर टेस्ट हुआ है और फिर कैसे उनकी जिंदगी बदल गई? इस इंटेंस मुद्दे वाली फिल्म में कहीं पर आप भावनात्मक रूप से टूटीं? -हां, उस दिन मैं शूटिंग पर फूट-फूट कर रो पड़ी थी और वो सीन था लॉकर रूम वाला जब मुझे लड़का करार देकर मर्दों के साथ लॉकर रूम में बंद किया जाता है। जिस दिन यह सीन शूट होना था, मैं सीन होने तक अपनी वैनिटी वैन से बाहर नहीं निकली और जब मैंने यह सीन किया, तो मेरे अंदर जो भावनाओं का तूफान था, वह पूरी तरह से बाहर निकल आया। पिछले दिनों आपको सोशल मीडिया पर भी अपने फिजिकल ट्रेनिंग की एक पोस्ट पर ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा, जब एक यूजर ने लिखा कि ये मर्दाना बॉडी तो तापसी पन्नू की ही हो सकती है? -फिल्म का मुदा कोई असल जिंदगी से दूर थोड़े न है। ये ट्रोल्स जिनका काम होता है, आपको खींच कर नीचे गिराना, नीचा दिखाना, आपको डीमोटिवट करना। यह फिल्म उन्हीं लोगों के लिए करारा जवाब है। असल में उन्होंने अनजाने में मेरा काम आसान कर दिया। मैं तो इस मुद्दे को फिल्म के जरिए बताना चाहती थी, मगर उन्होंने फिल्म की रिलीज के पहले ही मेरा काम संपन्न कर दिया कि देखो लड़कियों के प्रति हमारी मानसिकता ऐसी है। इसी मानसिकता को तो मैं टारगेट रही हूं। 'पिंक' से आपने 'नो का मतलब नो होता है', का मेसेज दिया, तो 'थप्पड़' से आपने घरेलू हिंसा पर बहस चलाई और अब इस फिल्म के जरिए आपने सवाल खड़ा किया है, 'अच्छा खेलने पर लड़की होने का सबूत चाहिए'? -आज जब हम साइंटिफिक रूप से इतना आगे बढ़ चुके हैं, तो क्या और कोई बेहतर तरीका नहीं है, जो यह पता लगा सके कि कोई मर्द औरत का रूप धरकर महिलाओं की रेस में भाग तो नहीं रहा है? असल में यह टेस्ट इसलिए बनाया गया था कि वर्ल्ड वॉर में मर्द औरत के बहुरूप में लड़कियों की रेस में भाग लिया करते थे। अगर किसी के साथ जेनिटिकली इम्बैलेंस है, तो आप उसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार करेंगे? क्या आप उसे उस कारण के लिए बैन करेंगे, जो उसके हाथ में ही नहीं है? डोपिंग के मामले को जेनिटिकली इंबैलेंस होने के मामले से कैसे अलग किया जाए, क्या हमारे पास इसका ज्यादा बेहतर वैज्ञानिक तरीका नहीं है? बहुत सारे देशों ने आईएएएफ से बात की है कि हमें इस टेस्ट पर पुनर्विचार करना चाहिए। बाबा आदम के जमाने के इस टेस्ट को बदले जाने की जरूरत तो है। जेंडर इनक्वैलिटी को हम हर जगह पर देखते आए हैं। आपको इस असमानता का सामना कहां करना पड़ा है? -हम पुरुष सत्तात्मक समाज का हिस्सा हैं और जहां पैट्रियाकी होगी, वहां आप जिस ओर भी मुंह घुमाएंगे आपको असमानता का सामना करना पड़ेगा। यह सदियों से बिना रोक-टोक के चलती आ रही है क्योंकि या तो किसी में हिम्मत नहीं थी या इतनी जागरूकता नहीं थी कि इस पर सवाल खड़े करे और जो करते थे उनकी आवाज दबा दी जाती थी। इसके लिए लगातार आवाज उठानी पड़ेगी। अब जैसे हमारी इंडस्ट्री में पे पैरिटी का जो मुद्दा है, हीरोइन को हीरो की तुलना में कम फीस मिलना, उसे लेकर हम कई लड़कियों ने अपनी बात रखी है। मगर उस मुद्दे को हम इस तरह से नहीं लड़ सकते कि अचानक हमारी सैलरी ईक्वल कर दी जाए। सिनेमा एक बिजनेस भी है, तो इस असामनता को खत्म करने के लिए जनता और जर्नलिस्ट को हमारी मदद करनी होगी। नायिका प्रधान फिल्म के लिए ऑडियंस का उस तरह से आना जरूरी है,जैसे वो एक नायक प्रधान फिल्म के लिए आती है। हमारी हीरोइन ओरिएंटेड फिल्मों का बिजनेस ज्यादा होगा, तो हमारी सैलरी भी बढ़ेगी। आप लगातार फिल्मों के जरिए महिला सशक्तिकरण का झंडा बुलंद करती आई हैं, तो क्या 'जुड़वा 2' जैसी नाच-गाने वाली कमर्शल फिल्मों को मिस करती हैं? -समय के साथ दर्शकों का नजरिया बदल रहा है और इंडस्ट्री में भी फिल्म मेकिंग में बहुत बड़ा बदलाव आया है। अब अगर मुझे कोई ग्लैमरस रोल करना है, तो मेरे लिए जरूरी नहीं है कि मैं उस रोल के लिए एक ऐसी फिल्म करूं, जिसमें मेरे किरदार के मायने कुछ ज्यादा नहीं हैं। अब कॉमिडी और गाना-बजाना आपको सिर्फ 'जुड़वा 2' जैसी फिल्म में देखने नहीं मिलेगा। अब इंटेंस फिल्मों में आपको कॉमिडी भी मिलेगी और ग्लैमरस अवतार भी। अब जैसे आप 'रश्मि रॉकेट' का उदाहरण ले लीजिए। आपने मुझे गरबा सॉन्ग, 'घणी कूल छोरी' में एकदम ग्लैमरस और पेपी अंदाज में देखा होगा, तो अब ऐसी फिल्में बन रही हैं, जहां आपको ग्लैमरस भूमिका करने के लिए रोल या सेंसिबिलिटी से समझौता नहीं करना पड़ेगा। पहले सुशांत सिंह राजपूत और अब आर्यन खान के ड्रग केस के बाद इंडस्ट्री पर इल्जाम लगाया जा रहा है कि बॉलिवुड और नशे का स्ट्रॉन्ग कनेक्शन रहे है। बॉलिवुड को एक लंबे समय से टारगेट किया जाता रहा है। -देखिए फेमस होने के ये अपने फायदे और नुकसान होते हैं। दुनिया के कोने-कोने से जो लोग हमें जाने बगैर हमारी फिल्मों के बलबूते पर हम पर प्यार बरसाते हैं, उन्हीं कोनों से नफरत भी आ सकती है। ये सिक्के का दूसरा पहलू है, जो हमें पता है। जिस तरह से बॉलिवुड एक सॉफ्ट पावर है, उस तरह से वह सॉफ्ट टारगेट भी है। बॉलिवुड में हीरो वर्शिप और उन्हें आइडियल माना जाता है। अगर कुछ गलत होता है, तो उसे टारगेट भी जल्दी किया जाता है। उनको पता है कि इन्हें टारगेट करने से बात आग की तरह फैलेगी। अटेंशन ज्यादा मिलेगा, तो कई बार अटेंशन हासिल करने के लिए बॉलिवुड को निशाना बनाया जाता है। इससे बॉलिवुड की प्रोग्रेस या मिलनेवाले प्यार पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। ऐसा तो नहीं है कि अतीत में ऐक्टर्स के खिलाफ केस दर्ज नहीं हुए। ये भी एक फेज है, जो गुजर जाएगा। नवरात्रि के मौके पर आप उन दो महिलाओं के बारे में बताइए जिन्हें आप शक्ति का परिचायक मानती हैं। -अपनी निजी जिंदगी में अपनी बहन को शक्ति का रूप मानती हूं। फिल्मी हस्ती की बहन होने के नाते उसके अपने संघर्ष और प्रतिक्रियाएं होती हैं, उन्हें वे बहुत खूबी से हैंडल करती है। मेरे कमजोर पलों में वह मेरी ताकत होती है। वह बेहद ही मजबूत व्यक्तित्व की स्वामिनी है, जिसकी मेरी जिंदगी में बहुत अहमियत है। मेरी प्रफेशनल लाइफ में मैं अपनी इंडस्ट्री की उन तमाम लड़कियों को शक्ति का रूप मानती हूं, जो यहां अपने बलबूते पर फिल्में बनवा पा रही हैं, निर्माता पैसा लगा रहा है और वे दर्शकों को खींच पा रही हैं, जैसे विद्या बालन, अनुष्का शर्मा या प्रियंका चोपड़ा की फिल्में, तो मुझे ये बहुत हिम्मत देती हैं कि बढ़े चलो, तुम सही रास्ते पर हो।


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